
हमारे भौतिक निशुल्क पुस्तकालयों की तरह, ‘दुनिया सबकी’ भी एक निशुल्क ऑनलाइन लाइब्रेरी है जिसमे सब एक-बराबर हैं। उसकी स्थापना भी उन्ही ‘TCLP’ मूल्यों पर आधारित है।
हम सबको एक ऐसे माहौल की ज़रूरत होती है जिसमे हम एक बराबर, एक समान महसूस करें। उस माहौल को बनाने के लिए हमें लाइब्रेरी और कहानियों की जरुरत होती है। आम-सी कहानियां, हमारी खुद की कहानियां। पिछले 5 सालों में TCLP ने इन कहानियों और किताबों के बल पर एक अनोखा समुदाय बनाया है। साथ पढ़कर, सोचकर, आपस में और किताबों के साथ ख़ास रिश्ते क़ायम किये हैं।
पर अचानक 2020 में कोरोनावायरस की वजह से हमें लाइब्रेरी को कुछ समय के लिए बंद करना पड़ा। तब हमने महसूस किया कि आपदा के समय भेद-भाव होना कितनी आम सी बात है। ऐसे वक़्त में एक ऐसे माहौल की ज़रूरत थी जिसमे हम एक-बराबर हों। तो ये सवाल आया कि क्या लाइब्रेरी सिर्फ एक कमरे से ही चल सकती है? या कहानियों और सोच से चल सकती है? क्योंकि कहानियाँ, सोच और वह ख़ास रिश्ते तो हैं हमारे पास!
इस सोच ने ‘दुनिया सबकी’ ऑनलाइन लाइब्रेरी को बनाया, बहुत आम साधनों का इस्तेमाल करके। इसमें हमने अपनी लाइब्रेरी के करीब 2000 मेंबर्स को WhatsApp के ज़रिये साथ जोड़ा और कहानियों, कविताओं ओर मज़ेदार एक्टिविटी के वीडियो व ऑडियो बनाकर उनके साथ हफ्ते में 3 दिन बाँटना शुरू किये। कहानियों से सोचने की ताकत को बढ़ाने की कोशिश करने लगे। हमने ‘दुनिया सबकी’ में सब के लिए जगह बनाई जो उनकी खुद की थी, किसी नेता या फ़िल्म अभिनेता की नहीं। बाधाएं खूब थीं, सबसे बड़ी यह कि भारत में सबको एक समान न ही आसानी से इंटरनेट मिलता है और न ही सस्ते में 'स्मार्टफोन'। कई पुराने मेंबर हमसे दूर हो गए जिसका हमें बहुत दुःख है। लेकिन 'दुनिया सबकी' TCLP की दहाड़ बन गयी: हम हार नहीं मानेंगे । कहानियों और पुराने रिश्तों के बल पर हम किताबों को फिर से हर पाठक तक पहुँचाने की कोशिश करेंगे। हमें इस वक्त दुनिया सबकी की ज़रूरत है क्यूंकि हमें सोचते रहने की आदत को बनाये रखना है, क्यूंकि हमें अपना हक़ याद रखना है।
ठीक ऐसे ही माहौल व सोच, जिसकी हम सबको ज़रूरत है वो ‘दुनिया सबकी’ के ज़रिये हम देने की कोशिश कर रहे हैं - माहौल बराबरी का, सोच बराबरी की।
-- Team TCLP
देखिये दुनिया सबकी