हिंदी का सफ़र... बिना डर!

08th December 2019

"भय!” जी हां, सही सुना आपने - डर। जो दुनियां में हर व्यक्ति कहीं न कहीं अपने अंदर लिए घूम रहा हैं। सच पूछिए तो ये डर कब, कैसे, कहाँ से उसके अंदर आ कर इतना बड़ा हो जाता हैं कि व्यक्ति डर के आगे स्वयं को ऐसी मानसिकता से जकड़ लेता हैं कि वह अपने भय / डर के उस क्षेत्र से उभरकर कभी बाहर नहीं आ पता और खुदको अंदर ही अंदर पिछड़ा हुआ महसूस करता है। जैसे कि मैं आपको अपना एक किस्सा  सुनाती हूँ।मुझे बचपन से ही अँग्रेज़ी में बात करने का शौंक रहा मगर टीचर कि डाँट, दोस्तों द्वारा मज़ाक उड़ाना, अशुद्ध अँग्रेज़ी उच्चारण पर 'तुमसे नहीं होने वाला', 'तुम रहने दिया करो' जैसी बातें मुझे अँग्रेज़ी के प्रति हीनता कि ओर ले जाती चली गई और मैंने हमेशा के लिए वह प्रयास छोड दिया।जैसे-जैसे अनुभव बड़े, हर क्षेत्र में एक मकाम पाती चली गयी मगर आज भी स्वयं में एक कमी सी महसूस करती हूँ !जिसके पीछे है "अँग्रेज़ी का वही डर " जो बचपन से मेरे साथ बड़ा होता आया है।

लेकिन मैंने आज के शिक्षा क्षेत्र में ये देखा है कि हम सभी हिंदी पढ़ने के भय से भी गुज़र रहें हैं। शायद इसलिए कि हम या हमारे बच्चें हिंदी पढ़ नहीं पाते या फिर तरह-तरह के भय उन्हें किताबें पढ़ने से रोकते हैं! इसका जीता जागता उदाहरण मैंने अपने बीच ही पाया। गोलू (बदला हुआ नाम) और उसके परिवार वाले ये मान चुके थे कि वह कभी भी पढ़ नहीं पायेगा । उसके पीछे था गोलू का स्पीच प्रॉब्लम जिसके कारण गोलू हर जगह हंसी का पात्र बन कर रह जाता। लेकिन एक दिन गोलू ने मेरी कक्षा में आकर मुझसे पूछा, “यहाँ क्या होता है?” मैंने ज़वाब दिया “जिन बच्चों को हिंदी पढ़ने में दिक्क़त आती है या अटक-अटक कर हिंदी पढ़ पाते हैं उन्हें यहाँ उनकी पसंद कि किताबों से जोड़कर हिंदी पढ़ने कि ताक़त और रूचि को बढ़ाया जाता है।” बस फिर क्या था ! गोलू हमारे पठन प्रवाह कार्यक्रम का भागी बन गया और अपना हिंदी का सफर इतनी मेहनत और लगन से पूरा करने में जुट गया कि उसे होश नहीं रहता कि बाकि बच्चें उसके बारे क्या सोचेंगे!

मगर क्या ये मुमकिन है कि बिना डर के,बिना टाईमटेबल के, बिना होमवर्क के, बिना टीचर के,बिना डंडे के हम कुछ सीख पाये! जी हाँ मुमकिन है … मगर कैसे ? आइये जानते है पठन प्रवाह सत्र को एक कविता के माध्यम से कि कैसे नामुमकिन को मुमकिन में बदला जाता है ?

पठन प्रवाह की हमारी शाला
रोज़ सुबह लग जाती है,
जब सुनते है नई कहानी 
उसमें ही खो जाते हैं  
चुनकर हम मर्ज़ी की कहानी
होमवर्क भी ले जाते हैं,
करत-करत अभ्यास रीडिंग का
मस्ती में जुट जाते हैं
समझ में आती कोई कहानी 
तो उलझ किसी में जाते हैं,
बुनकर नए ताने-बाने 
अनुभव नए सुनाते हैं 
भूले कभी कोई कहानी 
तब साथी साथ निभाते हैं,
पठन प्रवाह की शाला में
डंडे बिन सब पढ़ जाते हैं। 

डर से लड़ना ख़ासकर अपने डर से लड़ना कोई आसान बात नहीं होती। मगर धीरे-धीरे किया जाने वाला प्रयास एक दिन अपनी रफ़्तार पकड़ ही लेता है वो कहते हैं ना "करत-करत अभ्यास जड़ मति होत सुजान "।

Bhawna is a Reading Fluency Specialist with TCLP Sheikh Sarai.
The Community Library Project
Dharam Bhavan, C-13 Housing Society
South Extension Part -1
New Delhi - 110049
Donations to The Community Library Project are exempt from tax under section 80G of the Income Tax Act. Tax exemption is only valid in India.
Illustrations provided by Priya Kuriyan.
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License
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