मेरी नज़र में हिंदी टीचर वह है जो बच्चों को उनकी कक्षा के स्तर तक लाने में सहायक होते हैं। मगर इसके साथ साथ कक्षा की चुनौतियाँ, जैसे बच्चों की संख्या, आयु, इतियदि सामने आती रहीं, जिसमें बच्चों को उनके स्तर की किताबें पढ़ने में काफ़ी कठिनाई होती थी। इसके शायद कई कारण हो सकते थे। जैसे स्कूल में लाइब्ररी के होने पर भी किताबों तक बच्चों की पहुँच ना हो पाना या फिर बच्चों का अपनी मर्ज़ी से किताबों का चयन ना कर पाना। जिनसे कि वह सीखें गए शब्दों से मेल खाते शब्दों को क़िस्सो - कहानियों में पढ़कर अपनी समझ को बढ़ा सकें। देखा जाए तो, हम सभी बच्चों के विकास में अपना योगदान दे रहें हैं मगर उनको ऐसा प्लेटफार्म नहीं दे पाते जहाँ वे निष्पक्ष रूप से खुद को प्रस्तुत करें।
मेरी नज़र में हिन्दी टीचर का अर्थ था वह जो विभिन्न गतिविधियों, जैसे कि टीचिंग लर्निंग मेटीरियल, प्लेवे, स्टोरी टेल्लिंग जैसे टूल्स की सहायता से बच्चों को हिन्दी में होने वाली कठिनाइयों को दूर करें। हम अक्सर उनपर अपने अनुभव लागू करते हैं। ऐसे ही अपने कुछ पूर्व अनुभवों से मैंने सीखा कि बच्चों के लिए कक्षा में वातावरण निर्माण, होमवर्क देकर घर भेजना, स्माल पीयर ग्रुप रीडिंग करना ज़रूरी होता है। मगर जैसे जैसे मैने चाइल्ड सेंटर्ड एजुकेशन में काम किया मुझे एक नया पहलू देखने को मिला तो मैं भी अचंभित रही कि क्या ऐसा भी हो सकता है? जिसमें बच्चों का ग्रुप तो हो, मगर अलग अलग स्तर में, पसंदीदा होमवर्क के साथ, जिसमें ड्रिल के द्वारा रीडिंग स्टॅमिना, रीडिंग आक्युरसी और रुचि का लगातार बढ़ते चले जाना, अपने आप में किसी जादू से काम नही। जी हां! मैंने ये होते देखा है,जिसमें मैंने यह पाया कि अगर बच्चों को भयेमुक्त वातावरण मिले तो सरल से कठिन की ओर बढ़ना और सरल हो जाता है।
असल मायने में हिन्दी टीचर वह है जो बच्चों में उस शक्ति को पैदा कर सकें जिसके साथ वह हिन्दी भाषा को समझकर पढ़ना, सुनकर तर्क-वितर्क करना, कहानी, कविता, क़िस्सो को पढ़कर वे क्या समझते हैं, और कहानियों को अपने जीवन में हुई घटना या अनुभव से कैसे जोड़कर देखते हैं, इस पर विचार कर सकें, या फिर वे अपनी भावनाओं को कहानी के अंत में चित्रित या लिखित रूप में अंकित कर सकें। इन प्रतिभाओं का विकास करना ही हिन्दी टीचर का मॉलिक रूप है।
कहने को तो मैं हिन्दी विषय में रीडिंग फ्लूयेन्सी स्पेशलिस्ट टीचर के लिए कार्यरत हूँ मगर सच मानो तो आज से पहले कभी लाईब्रेरी जीवन व शिक्षा का हिस्सा नहीं रही। लेकिन अब लाईब्रेरी का हिस्सा बनकर मैं खुद में निरंतर बदलाव महसूस कर रही हूँ।