कहानियों की दुनिया

28th December 2019

कई साल पहलेएक राजकुमारी हुआ करती थी। राजकुमारी के बाल ऐसे कालेसुंदर थे की जैसे पहले कभी किसी ने नही देखे थे। जब वह अपने बाल खुले छोड़ती थी,तब वे बरगद के पेड़ की शाखाओं की तरह फैल जातेसभी लोग राजकुमारी के सुंदर बालों की तारीफ करते थेलेकिन राजकुमारी का दिल कुछ और चाहता था

और इस तरह हमारा कहानी सुनने-सुनाने का सत्र शुरू हुआ। एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर लगभग सौ चेहरे विस्मय से सुंदर, काले बालोंवाली राजकुमारी की कहानी सुन रहें थे। पहले तो वे समझ नहीं पा रहे थे की राजकुमारी अपने सुंदर, लम्बे बालों को लेकर परेशान क्यों होगी। लेकिन जैसे कहानी आगे बढ़ती गयी, उन्होंने राजकुमारी के प्रति सहानभूति दिखाई। हर रोज अपने बालों की देखभाल करने के लिए राजकुमारी को सौ दासियों की मदद लेनी पड़ती थी (इसे दर्शाने के लिए मैंने कुछ बच्चों को आगे बुलाया, जिनमें से कुछ बच्चों ने काले दुपट्टे को पकड़ रखा था, तो कुछ बच्चे बालों में शैम्पू लगाने का नाटक कर रहें थे)। बच्चों ने समझा की इतने लम्बे और सुंदर बालों को संभालना राजकुमारी के लिए बहुत मुश्किल काम होता होगा। 

मैं जिस तरह की कहानी सुनने-सुनाने की बात कर रहीं हूँ, वह किसी अकेले कलाकार ने नाटक का प्रदर्शन करने जैसा हैं। एक कुशल कहानीकार अभिनय की मदद से अपनी कहानी को दिलचस्प तरीके से प्रदर्शित कर सकता हैं। थोड़ी सी कल्पना से साधारण चीज़ों को परिवर्तित भी किया जा सकता है। राजकुमारी की कहानी के दौरान मैंने एक अध्यापिका से एक उनका काला दुपट्टा उधार लिया और लंबे बाल दर्षाने के लिए उसे अपने बालों से बांध दिया।

सोचा जाए तो बच्चों को कहानियों और किताबों की दुनिया से परिचित करवाने के कई तरीके हैं। बच्चे खुद किताबें पढ़ सकतें हैं, या उन्हें कोई कहानिया पढ़ के सुना सकता हैं। और भी कई तरीके हैं, जो उतने ही प्रभावशाली हैं। फिर कहानी सुनने-सुनाने में ऐसा ख़ास क्या हैं? 

कुछ वर्ष पहले मैं गुड़गाँव के कुछ सरकारी स्कूलों के साथ काम कर रही थी। उस समय यह सोचती थी कि बच्चों को किताबें पढ़ने में मज़ा आये, इसके लिए सिर्फ दिलचस्प किताबें उपलब्ध कराने की जरूरत है। शुरुआत में कुछ महीनों तक स्कूलों में हमारी दी गयी किताबें मायूस पड़ी रहीं, क्योंकि कोई भी बच्चा उन्हें पढ़ नहीं रहा था। सोचा कि बच्चों की पढ़ने में मदद की जाये, पर अकेले १०० बच्चों को संभालना कोई आसान काम है? ऊपर से बच्चें अलग-अलग उम्र के थे, और उनकी पढ़ने की क्षमता भी अलग-अलग थी। अगर उनका अलग-अलग गटों में विभाजन करके एक-एक गट को किताबें पढ़ कर सुनाती, तो बाकी सारे बच्चें उदास हो जाते। 

जब कहानिया सुनाने का दौर शुरु हुआ तो बहुत मज़ा आया! हम पेड़ की छाँव के नीचे खुले में बैठते। मेरा उद्देश्य एक ही था - कि हर एक बच्चा कहानी को कुतूहल से सुने। ऐसा जरूरी नहीं है कि हर बच्चा सुनाई गयी कहानी को पूरा समझे। हाँ, बीच-बीच में उनसे सवाल पूछती, और वे जवाब देते तभी हम आगे बढ़ते। कुछ बच्चे शर्मीले होते हैं, और पहले पहले जवाब देने से डरते हैं। पर जब भी वे जवाब देते हैं, मुझे अचंभित कर देते। वे कहानियों के माध्यम से ऐसे बातें समझ लेते, जिनकी अपेक्षा मैंने नहीं की थी। 

हर बच्चे को कहानियों की दुनिया की सैर करने का मौका मिलना चाहिए। कितना अच्छा होगा अगर हर एक कहानी के साथ वे दूर किसी नए विश्व को खोजें, किरदारों के साथ दोस्ती करें। मैं चाहती हूँ कि उन्हें इन कहानियों के भीतरी दुनिया की हिंसक वातावरण से दूर अपने लिए एक सुरक्षित स्थान मिले। 

जैसे ही राजकुमारी की कहानी ख़त्म हुई, कई बच्चों को इस कहानी के लिए अलग अंत क्या हो सकते हैं, इस बात पर चर्चा करते हुए सुना। यह भी सुनाई दिया कि सारे बच्चे उस किताब को पढ़ना चाह रहे थे। तब तय कर लिया कि यह कहानी सुनने - सुनाने का सत्र जारी रहेगा। 

(हमारी इस राजकुमारी को किसी राजकुमार की जरुरत नहीं थी। उसने अपने बलबूते पर अपनी ज़िन्दगी में ख़ुशी पायी। और जानकारी के लिए कथा बुक्स की  "एक अनोखी राजकुमारीकी कहानी पढ़ें। )

रूचि धोणा के लेख ‘Stepping Into Storyland’ का यह अनुवाद नूपुर लीडबीड़े ने किया है। 

Ruchi Dhona is passionate about making a difference in the social development space. She graduated from St. Xavier’s College in 2007 with a specialization in English literature. Post MBA she has worked with organizations like A.T. Kearney and Bain & Company. Through her organization Let’s Open a Book, she has set up free libraries in Assam, Rajasthan and Himachal Pradesh.
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Illustrations provided by Priya Kuriyan.
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License
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