आज का दिन कुछ बोरिंग सा था मैंने इस बोरियत को दूर करने के लिए किताबों के ढेर से आखिर एक किताब को ढूँढ ही लिया जो मेरी बोरियत को दूर करने में मेरी मदद कर सकती थी किताब का पहला पन्ना जिस पर बहुत ही खूबसूरती से लिखा था "दुनिया सबकी" - सफ़दर हाशमी की लिखी कवितायें, किताब के पहले पन्ने पर बेहद ख़ूबसूरती से तमाम तरह की आकृतियां बनी थीं, जिसमें कोई खेल रहा था, कोई पढ़ रहा था, कोई नाच रहा था, तो कोई ढ़ोलक बजा रहा था, बच्चे खेल रहे थे और भी न जाने कितने जानवर पक्षी भी दिखायी दे रहे थे, जो सब कहने की कोशिश कर रहे थे "दुनिया सबकी" तभी मुझे अपनी लाईब्रेरी की किताबों की दुनिया याद आई।
मुझे आज भी याद है वो दिन, जब मैंने पहली बार लाइब्रेरी में क़दम रखा था, मानो कुछ किताबें मुझे घूर रहीं हों और कुछ मुस्कुरा रहीं हों शायद उन्हें मेरा आना अच्छा लगा था या शायद वो समझ गयी थी कि उनका कोई नया दोस्त आया है और Honour Roll तो वहाँ का शहंशाह-ए-लाईब्रेरी लग रहा था, वाक़ई क्या एटीटुय्ड था उसका।
लेकिन ऊपर शेल्फ पर रखीं मोटी रेफेरेंस बुक्स कुछ नाख़ुश लग रही थीं और मुँह फेरकर आपस मे बातें करती "ह्म्म कोई आये कोई जाए, हमें तो कोई खोल कर भी नहीं देखता" और पिक्चर बुक की ओर इशारा करती हुईं बोली... "देखो तो ज़रा उन पिक्चर बुक्स को कैसे खिलखिला रहीं हैं उन्होंने मुँह फ़ेरते हुए कहा"
सच कहूं तो ऐसा लग रहा था कि लाइब्रेरी की मोटी मोटी इंग्लिश नॉवेल्स, नॉन फिक्शन, व हिस्ट्री बुक्स सभी को मानो पिक्चर बुक्स से जलन होती हो, उन्हें सबसे ज़्यादा तब बुरा लगता जब बच्चे लाइब्रेरी आते ही पिक्चर बुक्स और चाचा चौधरी की कहानियों को चुनने में कितना एक्साइटेड होते मानो वो किसी जलेबी के स्वाद में घुली हों और उनकी तरफ देखते भी नहीं।
हां कभी कभार उन्हें ख़ुशी मिल जाया करती थी जब कोई किताबी कीड़ा सीढ़ी लगा कर अपनी पसंद की बुक को खोजता, टाइम के साथ अब किताबें मेरी दोस्त बन चुकी थीं सुबह सुबह जब मैं लाइब्रेरी खोल कर किताबों को गुड मॉर्निंग बोलती तो मानो वह खुशी से चहक उठतीं आखिर रात भर आपस में बातें करते करते थक जो जाया करती थी, कुछ किताबें इधर उधर घूम कर अपने कपड़े गन्दे कर लेतीं और कुछ किताबें अपनी सखी सहेलियों से मिलने उनके शेल्फ तक पहुँच जातीं।
लाईब्रेरी खोल कर मैं रोज़ सुबह सबसे पहले उनकी चादर खींच कर उन्हें जगाती और फिर उन्हें साफ सुथरा चमकाती औऱ कभी कभी कुछ होशियार मोटी किताबें मुझे इशारा करती उन ज़ख्मी किताबों की तरफ़ ताकि मैं उनका ट्रीटमेंट करूं, ऐसा लगता था मानो वो मेरी पेशेंट और मैं उनकी फैमिली डॉक्टर हूँ!!
ख़ैर ये सिलसिला चल ही रह रहा कि अचानक क़िताबों के बीच ख़ामोशी छा गयी शायद उन्होंने किसी के मुँह से सुन लिया था कि "हमे ये घर खाली कर के जाना होगा" क्योंकि अब ये जगह बिक चुकी है, किताबें उदास थी और बदहवासी में ना जाने क्या क्या बोले जा रहीं थीं तभी एक हिंदी की दुबली पतली किताब घबराते हुए बोली "क्या अब हमें जीवन पर्यन्त बन्द ही रहना पड़ेगा ? एक इंग्लिश बुक अपनी अँग्रेज़ी झाड़ती हुई बोली “but why? and what's our fault?” इतिहास की मोटी बुक ने भी बीच में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए कहा "हज़ारों साल पहले की बात है जब विनाशकारी समय....”, “ओहो ! चुप करो” एक किताब ने बीच में टोकते हुए बोला, अरे ज़रा उधर तो देखो।
पिक्चर बुक्स का तो रो रो कर बुरा हाल था "नहीं हमें कहीं नहीं जाना, हमें बच्चों से प्यार है! पता नहीं हम इन्हें कभी देख भी पायेंगे या नहीं, मैं इन्हें छोड़ कर नहीं जाना चाहती..."
तभी एक समझदार बड़ी सी रेफरेंस बुक ने सबको हौसला देते हुए कहा ...."देखो सब शांत हो जाओ, हम यहाँ से दूसरी जगह ज़रूर जा रहे हैं पर हमारे सभी दोस्त नई जगह फिर से मिलेंगे" पिक्चर बुक ख़ुश होकर बोली "क्या सचमुच, ये!ये!ये!
उपर नीचे शेल्फ की किताबें अपने पड़ोसी दोस्तों से अपना अपना दर्द साझा कर रही थीं बाक़ी किताबें उदास थी और रो रहीं थीं, शायद उन्हें डर था की पता नहीं कब तक उन्हें यूँ क़ैद रहना होगा ना जाने कब उन्हें कोई अपनी उंगलियों का स्पर्श देगा और कब निहारकर उनकी तारीफ करेगा, कुछ दिनों में लाइब्ररी खाली होने वाली ही थी की देश भर में कोरोना महामारी का प्रकोप छा गया और लाइब्ररी को जल्द ही खाली करने की नौबत आ गयी।
मिस नंदिता, जिन्होंने इस लाईब्रेरी को कई साल पहले शुरू किया था, उन्होने उन किताबों की दुनिया को एक जगह दी थी जैसे फिर उन पुराने दिनों में खो गयीं याद करते हुए की कैसे उन्होंने किताबों की दुनिया को एक नयी रोशनी दी थी और कितने प्यार से बच्चों ने किताबों की दुनिया को अपनी दुनिया बनाया था।
यह सच है की उस पुरानी लाइब्रेरी के हर एक कोने में बहुत सी यादें थी और बहुत सारे खूबसूरत पल जो शायद अब हमेशा के लिए एक याद बन जाएंगे जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता, अचानक ख्यालों के समंदर से बाहर आते ही एक प्यारी आवाज़ उनके कानों को छू गयी।
एक छोटा सा बच्चा जो सब से अंजान, बेपरवाह होकर एक किताब से बातें कर रहा था उस बच्चे की भाषा किसी को समझ आये ना आये पर किताब बखूबी समझ रही थी, मिस नंदिता अब ख़ुश थी!!! और किताबों को बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा.... “देखो इन बच्चों को कितनी आज़ादी और हक़ से ये किताबों में यानी आपकी दुनिया में खो जाते हैं आपके बिना सब अधूरे हैं ये सब आपके साथ ही एक आज़ाद पंछी की तरह पूरे आसमान में अपने पंख फैलाना चाहते हैं और हम आपसे वादा करते हैं की हम आपकी दुनिया को सबकी दुनिया बनाएंगे हम बहुत जल्द वापस आएँगे एक ताकतवर रोशनी के साथ“ किताबों ने अब फिर से चहकना शुरू कर दिया था, पहले की तरह।