सिम्पी शर्मा, टीसीएलपी स्टूडेंट कौंसिल (विद्यार्थी परिषद) की प्रतिनिधि हैं। हाल में ही आई. एफ. एल. ए. संस्थान (इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ लाइब्रेरी अस्सोसिएशन्स एंड इंस्टीटूशन्स, व गेटे इंस्टिट्यूट डोईच लर्निंग प्रोग्राम / Goethe-Institut-Deutsch lernen program) में भारत से दो इमर्जिंग इंटरनेशनल वॉइसेस (उभरती हुई अंतर्राष्ट्रीय आवाजें) चुने गए, जिनमे से एक सिम्पी हैं।
लॉकडाउन की चपेट में दिल्ली शहर के एक कम्युनिटी लाइब्रेरी – यानि एक निःशुल्क जन-पुस्तकालय जिसके दरवाज़े बच्चे और बड़े, सबके लिए खुले हैं – ने निर्णय लिया कि वो एक डिजिटल लाइब्रेरी चलाएगा। किसी कम्युनिटी लाइब्रेरी के लिए ये एक बड़ा कदम था। डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित करके और उसको सकुशल चलाके कम्युनिटी लाइब्रेरी ने ये दिखा दिया कि ऐसी ऑनलाइन लाइब्रेरी, जिसकी पहुँच दुनिया भर में हो, कितना कुछ हासिल कर सकती है, बशर्ते हर कोई उस तक सुलभता से पहुँच पाए, न कि सिर्फ कुछ ख़ास लोग।
सर्वप्रथम, हम एक कम्युनिटी लाइब्रेरी, यानि जन पुस्तकालय, हैं। सो, हमारे लिए हमेशा हमारे मेंबर्स या सदस्य सबसे पहले आते हैं। अगर हम कुछ नया करना चाहते हैं, तो पहले ये देखते हैं कि हमारी कम्युनिटी, यानि समाज यानि पुस्तकालय के आस-पास रहने वाले लोगों, की ज़रूरतें क्या हैं, और हमारे नये कदम से उनको क्या लाभ होगा। हमारी संस्थान का लक्ष्य है, पढ़ने एवं सोच-विचार के लिए उच्च कोटी व विचारशील 'जगहों' का निर्माण -- न केवल ईंट-पत्थर से बनी जगह, मगर साथ ही साथ लोगों के भीतर, उनके मन में बनाई गयी जगह। हम इस पर भी गौर करते हैं कि कोई भी नया कदम हमको अपने लक्ष्य के करीब कैसे ले जायेगा। इस साल मार्च के महीने में लॉकडाउन के चलते हमने निर्णय लिया कि अपने मेंबर्स के लिए हम निःशुल्क डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना करेंगे।
मगर साथ ही साथ हमको इस बात का एहसास था कि हमारे कई सदस्य डिजिटल हक़ों से वंचित हैं। हमने माना कि ऑनलाइन लाइब्रेरी का उपयोग केवल कुछ ही सदस्य कर पाएंगे। जिन सदस्यों के पास डिजिटल उपकरण (मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप इत्यादि) था वे भी पढाई-लिखाई के लिए इनका इस्तेमाल ठीक से नहीं कर पा रहे थे। सो हम जानते थे कि डिजिटल लाइब्रेरी के माध्यम से हम उनकी सहायता भी कर सकेंगे।
मैंने डिजिटल लाइब्रेरी पर आयोजित इस वेबिनार सीरीज़ में भाग इसलिए लिया ताकी मैं उस सोच व उन आदर्शों को पेश कर सकूँ जो हमारी लाइब्रेरी का आधार हैं। हम भारत की राजधानी नई दिल्ली में निःशुल्क कम्युनिटी लाइब्रेरी चलाते हैं, उन इलाकों में जहाँ की जनसँख्या ज़्यादातर श्रमिक या मज़दूर वर्ग की है। ये ज़रूरी है कि हम डिजिटल लाइब्रेरी से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे विचार-विमर्श का हिस्सा बनें। मैंने वेबिनार में भाग इसलिए लिया क्योंकि मैं अन्य उपस्थित लोगों से बातचित व चर्चा के दौरान नए विचार सुनना और नयी बातें सीखना चाहती थी जिनसे लाइब्रेरी को लाभ हो।
इस महामारी के दौरान, जब सभी लोग अपने-अपने घरों में थे और सब कुछ बंद हो चुका था, हमने अपने सदस्यों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित किया। जब डिजिटल लाइब्रेरी चलने लगी तब हमने देखा कि किस तरह सदस्य लाइब्रेरी से और मज़बूती से जुड़ गये। हमने पहले सोचा भी नहीं था की हम कभी डिजिटल लाइब्रेरी चलाएंगे मगर आज ये डिजिटल लाइब्रेरी हमारी ईंट-पत्थर की पुस्तकालय जितनी ही महत्वपूर्ण है।
इस महामारी के दौरान, जब सभी लोग अपने-अपने घरों में थे और सब कुछ बंद हो चुका था, हमने अपने सदस्यों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित किया। जब डिजिटल लाइब्रेरी चलने लगी तब हमने देखा कि किस तरह हमारे सदस्य लाइब्रेरी से और मज़बूती से जुड़ गये। हमने पहले सोचा भी नहीं था की हम कभी डिजिटल लाइब्रेरी चलाएंगे मगर आज ये डिजिटल लाइब्रेरी हमारी ईंट-पत्थर की पुस्तकालय जितनी ही महत्वपूर्ण है।
वेबिनार के सदस्य ल्यूक स्वारदाउट ने वेबिनार में डिजिटल लाइब्रेरी के महत्व व प्रबलता की पुष्टि की। डिजिटल एप के सन्दर्भ में उन्होंने बनाने / खरीदने / जुड़ने में क्या अंतर है, यह भी समझाया। पहले मेरे लिए डिजिटल लाइब्रेरी का मतलब था एक ऑनलाइन लाइब्रेरी। मैंने ये नहीं सोचा था कि डिजिटल लाइब्रेरी खड़ा करने के लिए हमको एक नया ऐप बनाना होगा, या ऐप खरीदना होगा, या किसी मौजूदा ऐप से जुड़ना होगा।
हमने अपनी डिजिटल लाइब्रेरी एक पहले से बने हुए ऐप से जुड़ के बनाई, मगरसाथ ही साथ, हमने कुछ व्हाट्सएप्प ग्रुप भी बनाए जिनके सहारे से हम अपने सदस्यों को कहानियाँ, रीड-अलाउड, और ख़ास खबरें भेजतें हैं। हमने एक वेबसाइट भी तैयार किया। मुझे लगता है कि खुद कुछ नया बनाने से हम जो कुछ भी करना चाहते हैं – कुछ नया, कुछ हट के – वो और आसानी से कर सकते हैं।
वेबिनार की एक अन्य सदस्य, मेरी ओस्टरगार्ड ने बताया कि लाइब्रेरी ऐप के माध्यम से किस तरह वे पुस्तकालय के सदस्यों और पुस्तकालय-समाज से जुड़ी रहती हैं। मगर भारत में शायद लाइब्रेरी एप इतना कामयाब न हो सकें क्योंकि यहाँ अधिकांश लोगों के पास एप इस्तेमाल करने के साधन नहीं हैं और इंटरनेट उनकी पहुँच के बाहर है।
उम्मीद ये है कि लाइब्रेरी ऐप भविष्य में और कामयाब होंगे, जब ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के पास 'डिजिटल अधिकार' होगा, ऑनलाइन उपकरनों के उपयोग करने का, न की सिर्फ कुछ ख़ासलोगों के पास। महामारी से पहले, हमने अपनी लाइब्रेरी में कई सारे वर्कशॉप (कार्यशाला) का आयोजन किया, जैसे बुक क्लब, ड्रामा (नाटक), डांस (नृत्य), कविता, सिनेमा, इत्यादि। अब भी, डिजिटल लाइब्रेरी के माध्यम से, हम उन विषयों पर ऑनलाइन वर्कशॉप आयोजित कर रहें हैं जिनमे हमारे सदस्यों की रूचि है। हमने एक छह सप्ताह की अवधि का रीडिंग फ्लुएंसी (सहजता से पढ़ने) प्रोग्राम, कविता-लेखन वर्कशॉप, और बुक-क्लब का आयोजन किया। हम नए एप भले ही न बनाएं मगर आगे चल के हम ऐसे वर्कशॉप चलाएंगे जिनसे हमारे सदस्यों को कुछ नया सीखने का अवसर मिलेगा।
वेबिनार सदस्य केटी मोफैट ने वेबिनार में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया --"हमये कैसे जान सकते हैं कि हमारे बनाये हुए डिजिटल एप या व्हाट्सएप्प ग्रुप या कोई अन्य माध्यम वाकई हमारे सदस्यों के काम आ रहे हैं?" जब हमने अपना डिजिटल लाइब्रेरी बनाया और चलाना शुरू किया तो ये सवाल हमारे मन भी आता रहता था। फिर, कई फ़ोन कॉलों और सर्वेक्षणों (सर्वे) के बाद हम आश्वस्त हुए की हमारी ऑनलाइन पुस्तकालय ठीक से चल रही है। हाँ, अभी भी कमियाँ हैं और समस्याएँ उठती हैं, और हम उनको सुलझाने की कोशिश करते रहते हैं।
एक पुस्तकालय और उसके सदस्यों के बीच कैसा नाता-रिश्ता होना चाहिए, इस वषय पर मेरी ओस्टरगार्ड ने वेबिनार में चर्चा किया। उन्होंने हमको डेनमार्क के 'इ-लर्निंग' यानि ऑनलाइन-शिक्षा माध्यम से परिचित कराया और साक्षारता सम्बंधित सूचना व्यवस्था से भी। डिजिटल लाइब्रेरी व ऑनलाइन माध्यम के सन्दर्भ में, आपसी सम्बन्ध, दोस्ती, सुरक्षा व एकजुटता, डिजिटल समुदाय का निर्माण, सोच-विचार, एक-दुसरे से शिक्षा ग्रहन – इनवषयों पर भी चर्चा हुई। हमको हमेशा ध्यान रखना है कि हमारे पुस्तकालय हमारे कम्युनिटी को, समाज को, सदस्यों को, अहमियत दें।हम हमेशा अपने सदस्यों और उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हैं। हम अपने 'कम्युनिटी वाक' में, यानि सदस्यों और अड़ोस-पड़ोस के घरों में जा कर उनसे बात-चित करके, ये समझने की कोशिश करते हैं कि हमारे पुस्तकालय के बारे और हमारे काम-काज के बारे में उनके क्या विचार हैं। अपने डिजिटल लाइब्रेरी के सदस्यों से हम फ़ोन पर संपर्क रखते हैं ताकि उनसे नाता-रिश्ता बना रहे। हमारे डिजिटल लाइब्रेरी के काम की नीव है, अपने सदस्यों और समाज से हमारा रिश्ता। ये रिश्ता ऑनलाइन लाइब्रेरी से और गहरा व बेहतर हो रहा है।
आज मेरा ये विश्वास है कि हमारी ऑनलाइन लाइब्रेरी एक प्रबल और प्रभावशाली माध्यम हो सकती है, कम्युनिटी लाइब्रेरी के लक्ष्य को हासिल करने में। महामारी के चलते हमारा पुस्तकालय तो बंद पड़ा है लेकिन कुछ सदस्यों ने हमारी ऑनलाइन लाइब्रेरी का उपयोग किया और उसे पसंद भी किया। आगे चल के हम अपने पुस्तकालय के साथ-साथ ऑनलाइन लाइब्रेरी भी चलाएंगे। इससे हमारे सदस्यों की सुविधा और बढ़ेगी।
The article first appeared in http://goethe.de/EmergingInternationalVoices.
Copyright: Text: Goethe-Institut, Simpy Sharma. This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 license.
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